#Life
दिनभर घूमने के बाद आज दिन भर के दो दृश्य मन पर हावी हो रहे हैं..... भरी बरसात के बीच सड़कों पर भीगते हुए किसी दूसरे गाँव की चाय की दुकान पर मौसम का मज़ा लेते लेते आज दो ज़िंदगियों को देखकर मन मैं एक सवाल उठा.... पहले दृश्य मैं एक बूढ़े बाबा, आर्थिक रूप से कमजोर रहे होंगे, मोटे लेंस के चश्मे मैं, आगे के दाँत टूटे हुए, मन पर ऐसा गुस्सा मानो बादलों को डांट रहे हों, मैले से, गीले, कुर्ते और धोती में, साथ में उनके, एक लड़की थी, जवान, बाल बिखरे हुए, गंदा सा, कीचड़ साने कपड़े पहने हुए, पर उसके हाव भाव देखकर पता चला की वो शायद मानसिक रूप से थोड़ी कमजोर थी, बूढ़े बाबा, सहारे की आस में, अपनी बेटी को सहारा देते, उसका हांथ पकड़ कर क्खींचते हुए चले जा रहे थे, शायद उसको, उसके सबसे सुरक्षित ठिकाने, अपने घर जा रहे थे, और धीरे धीरे वे ओझल हो गए.... खैर मैं फिर गरमा गरम मंगोड़ों के मज़े लेते दुकान पर बाहर हो रही बारिश में खो गया.... दूसरे दृश्य में इसी बीच उस दुकान पर, एक अधेड़ उम्र की, 45-50 साल की महिला रही होगी, गाँव की सादी शैली मैं, उनके साथ एक छोटा 8-10 साल का बच्चा रहा होगा, शायद उनका पोता, या नाती था, तेज़ बारिश से बचते गाँव जाने के साधन की तलाश में, गरमा गरम मंगोड़े निकलते देखे, तो ममता भी जाग गयी, अपने पोते को मनाते हुए, प्यार करते, ध्यान देते हुए, अपने पल्लू की गांठ खोलकर, पैसे निकाकर, उसे बड़े प्यार से मंगोड़े खिला रही थी, नि-स्वार्थ..... मेरा निकालने का समय हो गया था, बारिश के बीच गाड़ी में बैठकर, मैं निकाल तो आया, पर सोच से नहीं निकाल पाया, ज़िंदगी या ज़िंदगियाँ, हम हमारे तक सीमित रहते हैं, बाकी अपने तक, पर सब अपने लिए रहते हुए भी, अपने से जुड़ी ज़िंदगियों की परवाह करते हैं, प्यार से, ममता से, सुरक्षा देने की भावना से, अपने चारों ओर कितनी सारी ज़िंदगियाँ रहती हैं, सब अपनी अपनी ज़िंदगी लीन.....
""ये एक लौ है क्या ....???
जो कभी बुझती ही नहीं...
ये एक धार है क्या...??
जो कभी रुकती ही नहीं...
ये एक कारवां है क्या....???
जिसकी कोई मंज़िल नहीं...
एक कोई निशान है क्या...??
जितना मिटाओ, कभी मिटता नहीं...
ये एक, रास्ता है क्या...???
अंत जिसका कभी किसी ने देखा नहीं...
जरा पता तो लगाओ.... ये कौनसी बला है....
जो हर तरफ दिखती है, और कभी टलती नहीं....
पता तो लगाओ... कहीं ज़िंदगी तो नहीं....???!!!
दिनभर घूमने के बाद आज दिन भर के दो दृश्य मन पर हावी हो रहे हैं..... भरी बरसात के बीच सड़कों पर भीगते हुए किसी दूसरे गाँव की चाय की दुकान पर मौसम का मज़ा लेते लेते आज दो ज़िंदगियों को देखकर मन मैं एक सवाल उठा.... पहले दृश्य मैं एक बूढ़े बाबा, आर्थिक रूप से कमजोर रहे होंगे, मोटे लेंस के चश्मे मैं, आगे के दाँत टूटे हुए, मन पर ऐसा गुस्सा मानो बादलों को डांट रहे हों, मैले से, गीले, कुर्ते और धोती में, साथ में उनके, एक लड़की थी, जवान, बाल बिखरे हुए, गंदा सा, कीचड़ साने कपड़े पहने हुए, पर उसके हाव भाव देखकर पता चला की वो शायद मानसिक रूप से थोड़ी कमजोर थी, बूढ़े बाबा, सहारे की आस में, अपनी बेटी को सहारा देते, उसका हांथ पकड़ कर क्खींचते हुए चले जा रहे थे, शायद उसको, उसके सबसे सुरक्षित ठिकाने, अपने घर जा रहे थे, और धीरे धीरे वे ओझल हो गए.... खैर मैं फिर गरमा गरम मंगोड़ों के मज़े लेते दुकान पर बाहर हो रही बारिश में खो गया.... दूसरे दृश्य में इसी बीच उस दुकान पर, एक अधेड़ उम्र की, 45-50 साल की महिला रही होगी, गाँव की सादी शैली मैं, उनके साथ एक छोटा 8-10 साल का बच्चा रहा होगा, शायद उनका पोता, या नाती था, तेज़ बारिश से बचते गाँव जाने के साधन की तलाश में, गरमा गरम मंगोड़े निकलते देखे, तो ममता भी जाग गयी, अपने पोते को मनाते हुए, प्यार करते, ध्यान देते हुए, अपने पल्लू की गांठ खोलकर, पैसे निकाकर, उसे बड़े प्यार से मंगोड़े खिला रही थी, नि-स्वार्थ..... मेरा निकालने का समय हो गया था, बारिश के बीच गाड़ी में बैठकर, मैं निकाल तो आया, पर सोच से नहीं निकाल पाया, ज़िंदगी या ज़िंदगियाँ, हम हमारे तक सीमित रहते हैं, बाकी अपने तक, पर सब अपने लिए रहते हुए भी, अपने से जुड़ी ज़िंदगियों की परवाह करते हैं, प्यार से, ममता से, सुरक्षा देने की भावना से, अपने चारों ओर कितनी सारी ज़िंदगियाँ रहती हैं, सब अपनी अपनी ज़िंदगी लीन.....
""ये एक लौ है क्या ....???
जो कभी बुझती ही नहीं...
ये एक धार है क्या...??
जो कभी रुकती ही नहीं...
ये एक कारवां है क्या....???
जिसकी कोई मंज़िल नहीं...
एक कोई निशान है क्या...??
जितना मिटाओ, कभी मिटता नहीं...
ये एक, रास्ता है क्या...???
अंत जिसका कभी किसी ने देखा नहीं...
जरा पता तो लगाओ.... ये कौनसी बला है....
जो हर तरफ दिखती है, और कभी टलती नहीं....
पता तो लगाओ... कहीं ज़िंदगी तो नहीं....???!!!
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